तुम्ही भावना हो मेरी
तुम्हीं भावना हो मेरी
तुम्हीं कल्पना,कविता तुमहीं,
तुम्हीं भावना हो मेरी।
मेरे अंदर का कवि बोले,
करे साधना वह तेरी।।
सुर-लय, ताल-छंद सब मेरे,
तुम्हीं बिंब-संकेत बनी।
तुम्हीं लेखनी को गति देती,
जो भावों में रहे सनी।
ले प्रकाश तुमसे ही चंदा,
तम-घन छाँटे बिन देरी।।
तुम्हीं भावना हो मेरी।।
तुम्हीं पास मेरे हो रहती,
सदा सहारा बन मेरा।
तेरे बिना जगत यह सूना,
लगता भूतों का डेरा।
होती है अनुभूति तुम्हारी,
जब वायु लगाती फेरी।।
तुम्हीं भावना हो मेरी।।
तुमसे जीवन सँवरा मेरा,
खुशियों का भंडार मिला।
जब भी कविता लिखने बैठूँ,
तेरा ही आधार मिला।
मेरा काव्य-वृक्ष फल देता,
जिमि मीठा फल हो बेरी।।
तुम्हीं भावना हो मेरी।।
हृदय-भाव में हलचल लाती,
तेरी छवि प्यारी-न्यारी।
मन छू लेता गगन उछल कर,
आती कविता की बारी।
नरम कल्पना की पंखों पर,
चढ़े तूलिका चित्र उकेरी।।
तुम्हीं भावना हो मेरी।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Varsha_Upadhyay
11-Apr-2023 09:30 PM
Nice 👍🏼
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Mukesh Duhan
11-Apr-2023 07:30 PM
Nice ji
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ऋषभ दिव्येन्द्र
11-Apr-2023 12:48 PM
बहुत ही सुन्दर रचना
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